Jal pradushan ke karan aur nivaran
jal pradushan : जल में जो असंतुलन की स्थिति पैदा होती है जल प्रदूषण कहलाती है.
जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रक अधिनियम १९७४ की धारा २ (ड.) के अनुसार जल में प्रदुषण का संक्रमण निम्न प्रकार से हो सकता हैं.

भौतिक , रसायनिक एवम जैविक
उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से जल प्रदूषित होता हैं.
रसायनिक गैसों के रिसाव से जल प्रदूषित होता हैं.
किसी ठोस वस्तु के कारण भी जल में प्रदुषण बढ सकता हैं.
केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड का गठन जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रक अधिनियम १९७४ के अनुसार सितंबर १९८४ में किया गया था.
W.H.O. के अनुसार भौतिक रूप से साफ जल का मानक तय किया गया कि स्वच्छ जल साफ शीतल गन्ध रहित स्वाद युक्त होना चाहिए. रसायनिक रूप से स्वच्छ जल का ph मानक ७ से ८.५ के मध्य होना चाहिए.
जल प्रदुषण के स्रोत – jal pradushan ke shrot
प्राकृतिक : भू स्खलन से खनिज पदार्थ के जल में मिलने से अथवा पेड़ पौधे या पत्तियों के कारण भी जल प्रदुषण होता हैं.
शीशा पारा कैडमियम आर्सेनिक कोबाल्ट बैरियम निकील इत्यादि जैसे विषैले तत्वों के कारण भी जल प्रदुषण होता हैं.
मानवीय श्रोत
घर से निकलने वाला गंदा पानी, मल , कीटनाशक दवाएं जो खेतो में छिड़काव होता हैं वह बरसात के दिनों में इधर उधर फैल जानें से भी जल प्रदुषण बढ जाता हैं.
उद्योगों से निकलने वाला गन्दा पानी भी जल के प्रदुषण को बढ़ाता है.
तापीय प्रदुषण से अंबलीय वर्षा होती हैं जो कि जल प्रदुषण को बढ़ाता है.
रेडियो धर्मी जहां पर बिजली घर बनते हैं या जिस स्थान पर रिसर्च होता है या जहां पर से परमाणु बिजली बनाई जाती है वहां से जो कचरा निकलता है उससे भी जल प्रदुषण होता हैं.
जल प्रदूषण से कौन कौन से रोग होते हैं?
पीलिया पोलियो gastrities मियादी बुखार कोलरा ये सभी रोग जल में फैले विषाणु के कारण होते हैं.
जल प्रदुषण को मापने के लिए बायो कैमिकल आक्सीजन डिमांड परीक्षण किया जाता हैं.