Story behind jyotirlinga – ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक बहुत ही पराक्रमी राछस हुआ करता था उसका नाम भीमा था वह कुंभकरण और कर्कटी का पुत्र था. वह अपनी माताके साथ पर्वत पर निवास करता था एक दिन उसने अपनी माता से अपने पिता के बारे में पूछा कि मेरे पिता जी कौन है और कहां है कर्कटी ने बताया कि तो रावण के छोटे भाई कुंभकरण तुम्हारे पिता है जिसे श्री राम ने अपने छोटे भाई के साथ मिलकर मार दिया उनसे पहले मेरे पति विराट थे उन्हे भी श्रीराम ने ही मार डाला.
माता से बातें सुनकर उसे बड़ा क्रोध आया. उसने सोचा विष्णु के साथ कैसा बर्ताव करू यदि मैं अपने पिता का पुत्र हूं तो श्री हरि से अवश्य बदला लूंगा और फिर राक्षस मन में ऐसा निश्चय करके तप करने के लिए चला गया उसने ब्रह्मा जी की 1000 वर्षों तक तपस्या की एक दिन 1 दिन ब्रहम जी प्रकट हुए और बोले भीम मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं इसलिए तुम्हारी जो इच्छा हो वर मांगो उसने ब्राहमा जी को प्रणाम करते हुए कहा देवेश्वर यदि आप मुजसे प्रसन्न हैं तो मुझे एसा बल दिजिए जिसकी कही भी किसी सेकोई तुलना ना हो ब्रह्मा जी ने उसे यह वर दे दिया वर पाकर वह अपने माता के पास आया और बोला अब मेरा बाल देखो मैं इंद्र आदि देवताओं तथा इसकी सहायता करने वाले श्री हरि का अंत कैसे करता हूं. भयानक पराक्रमी भीम ने पहले देव लोक जीता फिर धरती लोक पर आकर त्राहिमाम मचा दिया.
उसने सबसे पहले कामरूप के राजा सुदीक्षण पर आक्रमण किया राजा के साथ उसका भयंकर युद्ध हुआ भीमा ने ब्रह्माजी से प्राप्त वर के प्रभाव से शिवभक्त महाराज को परास्त कर दिया और उनका राज्य अपने अधिकार में कर लिया और राजा को भी कैद कर लिया.
परंतु कैद में भी महाराजा ने भगवान की प्रीति के लिए शिवलिंग बनाकर उनका पूजन शुरू कर दिया. सभी देवता ऋषि अत्यंत पीड़ित हो भगवान शिव की आराधना करने लगे तब भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो देवताओं से बोले मैं प्रसन्न हूं आप जो कहना चाहते हैं कहिए देवता बोले प्रभु कुंभकरण से उत्पन्न कर्कटी का पुत्र भीम ब्रह्मा जी के दिए हुए वर से शक्तिशाली हो देवताओं को निरंतर पिडा दे रहा है.
भगवान शिव बोले काम रूप देश के राजा सुदिछन मेरे श्रेष्ठ भक्त हैं. उनसे जा कर कहिए कि वह मेरी आराधना करे मै स्वय उनकी रछा करने आऊंगा उसके बाद देवताओं ने वहां जाकर बातें बताई उसके बाद शिव जी लोकहित की कामना से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सुदी क्षण के निकट गए और गुप्त रूप से वही निवास करने लगे उसके बाद किसी ने राक्षस से जाकर कह दिया कि राजा तुम्हारे नाश के लिए कोई पूजा कर रहा है यह बात सुनते ही वह राक्षस कुपित हो उठा और उनको मार डालने की इच्छा से नंगी तलवार हाथ में लिए राजा के पास गया और भगवान शिव के लिंग पर तलवार चलाई परंतु उस शिवलिंग का स्पर्श भी नहीं कर पाया कि उसमें से साक्षात भगवान शिव प्रकट हो गए और बोले देखो अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट हुआ हूं ऐसा कहकर भगवान शिव ने अपनी आंख से उसकी तलवार के दो टुकड़े कर दिए तब उस राक्षस ने फिर अपना त्रिशूल चलाया परंतु शिव ने उस दुष्ट के त्रिशूल के टुकड़े कर डाले तदनंतर शिव जी के साथ उसका घोर युद्ध हुआ.
भगवान्स शिव ने भीमा समेत कई असुरो का वध कर दिया भगवान शिव की कृपा से इंद्र आदि देवताओं और मुनियों को तथा संपूर्ण जगत स्वस्थ हुआ फिर देवताओं और मुनियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि प्रभु आप लोगों को सुख देने के लिए सदा निवास करें आपका दर्शन करने से यहां सब का कल्याण होगा आप भीम शंकर के नाम से विख्यात होंगे और सभी के संपूर्ण मनोरथ की सिद्धि करेंगे आपका यह ज्योतिर्लिंग सदा पूजनीय और समस्त आपत्तियों का निवारण करने वाला होगा और तब से भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.