12 Jyotirlinga names aur katha – 12 ज्योतिर्लिंग का नाम और कथा

Jyotirling ke naam

12 Jyotirlinga names aur katha in hindi – 12 ज्योतिर्लिंग का नाम और कथा

महाकालेश्वर शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार उज्जैनी, उज्जैन का हुआ करता था. उज्जैन में चंद्रसेन राजा का साशन हुआ करता था. राजा भगवान् शिव के परम भक्त थे. भगवान शिव के पार्षदों में मणिभद्र पार्षद प्रधान था जो राजा चंद्रसेन का मित्र भी था . एक बार प्रसन्न होकर मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को चिंतामणि नामक महामणि दी जिसे राजा ने अपने गले में धारण कर लिया जिसके बाद उस दिव्य मणि के प्रभाव से राजा का प्रभाव और तेज हो गया और उनकी कीर्ति चारो दिशाओं में फैलने लगी .

जब दूसरे देशों के राजाओं को यह बात पता चली तो वह भी इस दिव्यमणि को बल पूर्वक पाने की कोशिश में उजैन पर आक्रमण करने लगे स्वयं को हारता हुआ देख राजा अंततःशिव जी के शरण में गए और उनकी भक्ति भाव से आराधना करने लगे. उसी समय गोपी नाम की एक विधवा अपने पांच वर्ष के पुत्रके साथ महाकालेश्वर के दर्शन करने आयी राजा को ध्यान मग्न देख बालक को भी शिव भक्ति करने की भावना जाग्रत हुई फिर घर आकर एक शिला रख कर अपने घर में बैठकर भक्ति भाव से शिव जी की पूजा करने लगा. कुछ देर पश्चात जब उसकी माता ने बुलाया तो वह नहीं गया तब उसकी माता स्वयं उस स्थान पर आई जहां बालक ध्यान में बैठा था वहां भी उसकी माता ने पुकारा किंतु वह ध्यान में लीन रहा .

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मां ने क्रोधित होकर पूजन सामग्री उठाकर फेंक दिया तो उसने अपनी पूजा को नष्ट देख कर बहुत दुख हुआ और देव महादेव करता हुआ वहीं मूर्छित हो गया जब होश में आया तो उसने देखा कि भगवान शिव की कृपा से एक सुंदर मंदिर निर्मित हो गया मंदिर के शिवलिंग विराजमान था एवं पूजा की सामग्री भी यथावत रखी हुई थी जब उसकी मां को यह सब पता चला तो मन ही मन खुद को कोशने लगी राजा चंद्रसेन भी सूचना मिलने पर उसके पास दर्शन को पहुचे कुछ देर बाद बाकी राजा भी जो युद्ध कर रहे थे वहां आए और शिव लिंग के दर्शन किए .और तभी से भगवान शिव महाकाल के रुप में उज्जैन में विराजमान है .

केदार नाथ ज्योतिर्लिंग: विष्णु जी के नर और नारायण नाम के दो अवतार हुए थे वे दोनों बद्रिकाश्रम तीर्थ में पार्थिव शिवलिंग बनकर तपस्या करने लगे ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव प्रतिदिन भगवान के बनाए हुए पार्थिव शिवलिंग में पूजित होनेके लिऐ स्वयं उनके पास आया करते थे जब उन दोनों के पूजन करते हुए बहुत दिन बीत गए तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन दोनों से कहा तुम दोनों मुझसे वर मांगो नर और नारायण दोनो ने भगवान शिव से बोले देवेश्वर यदि आप हम दोनों से सच में पसंद है प्रसन्न हैं तो अपने स्वरूप से पूजा ग्रहण करने के लिए यहां स्थित हो जाइए तभी से हिमालय के केदार तीर्थ में भगवान शिव स्थित हो गए जिसे आज केदारनाथ के नाम से जाना जाता है.

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