जब देवी पार्वती ने भगवान शिव द्वारा इस पूरी सृष्टि का सार समझना चाहा तब भगवान शिव ने मिट्टी पर इस श्रीयंत्र का रेखा चित्र बनाया और समझाया कि श्री यंत्र ही हमारे पूरे संसार और सृष्टि का प्रतिरूप है जिस जगह पर भगवान शिव ने श्री यंत्र समझाया था आज हम उस जगह को श्रीनगर के नाम से जानते हैं .
अनुरेनू से लेकर शब्दो की मूल तक फिर चाहे वह क्लीनिक कीट हो, सर्प हो, वन हो और जंगल हो पक्षियों जानवर और मनुष्य तक के हर प्रकार के जीव जंतु को अपने में समाता है हमारा श्रीयंत्र.
बिंदु का जन्म भगवान शिव के 4 त्रिकोण और देवी पार्वती के 5 त्रीकोणों के संग द्वारा हुआ था. इन नौ त्रीकोनो को जोड़ने से बनी 43 त्रिकोण, ये 43 त्रीकोन हमारे शरीर के धातुओं को दर्शाते हैं सबसे पहला त्रिकोण हर जीवी का कवच यानी की जीवात्मा कहलाता है फिर आते हैं अष्ट त्रिकोण अष्टभुजा को दर्शाते हैं यानी की धारा ,अनिला अनल, आहा, प्रत्यूषा, प्रभासा सोमा और ध्रुआ उसके बाहर के दो चक्र 10 त्रिकोण के मलाओ जैसे यंत्र को सजाते हैं यह 10 त्रिकोण 10 अवतारों को और 10 महाविद्याओं को दर्शाते हैं फिर आते हैं 14 त्रिकोण हमारे मानव के अंतर यानी 14 मन्वंतरा को दर्शाते हैं 72 महायुगा को मिलाकर बनता है एक मन्वंतरा और 14 मन्वंतरा मिलाकर बनता है ब्रह्मा का 1 दिन यानी कि एक कल्पा उसके ऊपर 8 सिर वाले सर्पो का चक्र बना है जिसे नाग दल कहते हैं नाग दलो के ऊपर 16 फूलों की पंखुड़ियों से बना हुआ एक चक्र है फिर जो-तीन परत है वह हमारी त्वचा के तीन परतों को यानी के एक्टो डर्म, एंटो डर्म और मिजो डर्म को दर्शाते हैं हर जीवी से लेकर ग्रहों तक जिसे हम ओजोन लेयर के नाम से जानते हैं ऐसे सभी के ऊपर तीन परत होते हैं ऐसा यह श्रीयंत्र हमें समझाता है
यह ठीक हमारी मॉडर्न टेक्नोलॉजी जैसे 8GB, 16GB, 32GB जैसे बढ़ते जाते हैं. फिर आता है सदा नत रेंजर्स 3 परत जो हमें स्थूल शरीर ,सूक्ष्म शरीर और कारण शरीरा समझाते हैं यह भूर भुवा स्वाहा को दर्शाते हैं यह पर्ते चार खुली द्वारों को बनाते हैं जो हमें समझाते हैं इस चक्र में एक बार आ गए तो वापस निकलना नामुमकिन है हमें मिटाने वाले भगवान शिव को जन्म देने वाली ब्रह्मा के पिता महा विष्णु का जन्म हुआ इसी संयंत्र.
यदि आप इसे समझ गये तो 16 (षोडशी मंत्र) बीजक श्री मंत्र को समझने और ज्ञात करने के लिए और भी ज्यादा आसानी होगी इसके मंत्र को सभी मंत्रों का राजा माना जाता है तो आइए देखते तथा पढ़ते हैं:-
महाषोडशी मन्त्र:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐह्रींश्रीं कएईलह्रीं हसकहलह्रीं सकलह्रीं सौःऐंक्लींह्रींश्रीं नमः”