Baba baidyanaath jyotirling devaghar dhaam Ki katha
वैद्यनशेश्वर ज्योर्तिलिंग रावण ने हिमालय पर कई वर्षो तक भगवान शिव की तपस्या की किन्तु फीर भी शिव जी ने उसे अपने दर्शन नहीं दिए फीर रावण ने एक कुंड का निर्माण कर उसमें अग्नि प्रज्वलित कर दी और एक एक कर अपने शीश को काट कर कुंड में अग्नी को समर्पित करने लगा जब वह अपने अंतिम शीश को काटने जा रहा था तभी शिव जी प्रकट हुए और बोले हे दशानन मै तुमसे प्रसन्न हूं वर मांगो तब रावण ने कहा मै आपका एक शिवलिंग लंका में स्थापित करना चाहता हूं इसीलिए हे प्रभु मुझे शिवलिग प्रदान करने की कृपा करें.
भगवान शिव जी ने वरदान दिया और कहा शिवलिंग ले जा सकते हो लेकिन यदि रास्ते में कहीं रख दोगे तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा भगवान शिव की बातें सुनकर रावण ने कहा प्रभु मुझे स्वीकार है शिवलिंग को उठा कर लंका के लिए चला काफी देर चलने के बाद उसे एक जगह लघु सनका की आवश्यकता महसूस हुई उसने चारों तरफ देखा तब उसे एक ग्वाला दिखा ग्वाले के पास गया और बोला कृपया कर शिवलिंगको थोड़ी देर के लिए अपने हाथ में रखो . मै लघुसंका करके आता हूं ग्वाले ने अपने हाथों में शिवलिंग को थाम लिया कुछ देर हो जाने पर जब रावण नहीं आया तो उसे महसूस होने लगा कि शिवलिंग का भार बढ़ रहा है अतः भार सहन ना होने पर उसने उसी जगह जमीन पर रख दिया और वहां से चला गया तब रावण लौट आया और उसने देखा कि ग्वाला नहीं है और भगवान शिव का शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ हैं उसने शिवलिंग को उठाने का प्रयत्न किया परंतु शिवलिंग वह उठा नही पाया फीर उसने अपने अंगूठे का निशान शिवलिंग पर बना दिया और चला गया. इसके पश्चात श्री हरि और ब्रह्मा जी ने देवी देवता के साथ आकर विधि पूर्वक पूजन किया इस प्रकार वहां शिवलिंग प्रतिष्ठा की और वैध नाथेशवर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.