Why celebrating Diwali festival – क्यों मनाते हैं दीपावली का त्यौहार

Why celebrate Diwali

Why celebrating Diwali festival – क्यों मनाते हैं दीपावली का त्यौहार

रक्त बीज एक ऐसा असुर था जिसके सिर पर ब्रह्मा जी का हाथ था उसे यह अद्भुत वरदान प्राप्त था कि जब भी उसका रक्त की बूंद जमीन पर गिरेगी उससे एक और रक्तबीज का जन्म होगा इस कारण रक्त बीज युद्ध में जैसे अजय बन गया था . वह शक्तिशाली था और देवियों को हासिल करने की विकृत मानसिकता के साथ स्वर्ग पर राज करना चाहता था उसने देवलोक जाकर देवी देवी-देवताओं पर हमला कर दिया सभी को वहा से मजबूरन अपने प्राण बचा कर भागना पड़ा पर रक्तबीज नहीं रुका देवियों से मोहित होकर वह उनका पीछा करने लगा देवी देवता परेशान होकर कैलाश पर्वत पहुंच गए और देवी पार्वती को सब कुछ बताया देवी पार्वती ने सभी को पीछे हटने को कहा और खुद रक्तबीज का सामना करने के लिए खड़ी हो गई रक्तबीज ने जब कैलाश जाकर देवी पार्वती को देखा तो वह उन पर मुग्ध हो गया देवी पार्वती ने उसे लौट जाने का आदेश दिया लेकिन वह हंस पड़ा और देवी पार्वती की तरफ बढ़ने लगा देवी ने सामने 

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रखा शिवजी का त्रिशूल उटाया और रक्तबीज पर प्रहार कर दिया परिणाम स्वरुप रक्तबीज के शरीर से रक्त टपकने लगा और फिर ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार रक्त की हर एक बूंद से एक रक्तबीज का जन्म हुआ यह देखकर देवी कुपित हो उठी थी और सारे रक्तबीजो पर हमला कर दिया इससे कई और रक्त बीजों का जन्म हो गया देवी पार्वती का क्रोध अब आसमान छूने लगा था वह अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पा रही थी जब उनका गुस्सा चरम सीमा पर आ गया उनका शरीर काला पड़ने लगा आंखें खून से लाल हो गई और देखते ही देखते देवी ने भयंकर रूप धारण कर लिया. शक्तिशाली भयानक देवी की गर्जन से सारा ब्रह्मांण हिल गया. वह राक्षस जो पराक्रमी देवी के सबसे निकट खड़े थे उनके गर्जन से ही भसम हो गये . म्रग की खाल पहन पहने हुए हाथों में प्रतिशोध की तलवार लेकर नर मुंडो की माला पहन कर विकराल रूपी महाकाली प्रकट हुई. वह इतनी भयानक थी कि रक्त रक्तबीज डर के भागने लगा मां काली ने भयंकर गर्जन किया और रक्तबीज के पिछे दौड़ने लगी. काली मा ने शक्तिशाली प्रहार किया और वह एक-एक करके असुरों को निर्मम तरीके से चीरने लगी पर उससे और रक्तबीज पैदा होने लगे. प्रलय सी क्रोधित मां काली उनके क्रोध से सारा संसार जलने लगा उन्होंने एक हाथ से रक्तबीज के सर को पकड़ा और तलवार से उसके सर को सिर को धड़ से अलग करके उसे खप्पर में रख दिया ताकि एक बूंद भी धरती पर ना गिर सके फिर इसके शरीर को निगल गयी. काली मां की एक ही सांस में बाकी असुर भी उनके मुंह में समा गए और मां काली की चीरती हुई हंसी की आवाज से आसमान काप उथा. इस तरह असुरों के नायक रक्तबीज का भयानक अंत हुआ. उनके गुस्से ने जैसे खुद उनको ही अपने वश में कर लिया था उनके तांडव से त्रिलोक में हाहाकार मच गया सब कुछ तबाह होने लगा देवी देवता चिंतित होकर महादेव के सरण मे गये . भगवान शिव भी कालीका को रोकने का साहस नहीं कर पाये. ऐसा लग  रहा था जैसे कुछ भी नहीं बचेगा और फिर से जीवन का पतन हो जाएगा. महादेव के पास अब देवी को रोकने का एक ही रास्ता था वह काली मां के सामने एक शव की तरह लेट गए. देवी तांडव करते हुए आगे बढ़ रही थी कि अचानक उनका पैर महादेव के शरीर से टकराया और वह शिवजी के ऊपर खड़ी हो गई जब उन्होंने नीचे देखा तब उन्हें एहसास हुआ कि जिन्हें वह अपने पैरों के नीचे कुचल रही थी वह उनके पति साक्षात भगवान शिव जी थे . तब जाकर मां काली शांत हुई इस प्रकार खत्म हुआ रक्तबीज का आतंक और मा काली का तांड्व. मां काली के शरण में दीपावली के 1 दिन पहले काली चौदस मनाई जाती है इस दिन को काली पूजा होती है और इस दिल को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता हैं. जब राम जी रावण का वध करके सीता को जीत कर 14 वर्षों के वनवास काटकर अयोध्या लौटे तब जैसे हवा में खुशी की लहर दौड़ रही थी. हर कली खिल गई और फूल मुस्कुराने लगे . अयोध्या वसीयो का मन अपने राजा रघुवंश के उत्तराधिकारी दशरथ पुत्र श्री राम के लौटने पर प्रफुल्लित हो उठा. हर कदम पर दीप जलाए गए थे अयोध्या नगरी जैसे एक नई दुल्हन की तरह सजी हुयी हो.


राम की रावण पर जीत, असत्य पर सत्य की जीत और राम जी के विजयी होकर अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है दीपावली अर्थात दिपो का त्योहार.

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