नवरात्रि पूजा की विधि – Process to perform Navratri Puja – Navratri puja vidhi at home
प्रात:कालीन सुर्योदय से पुर्व उठकर स्नान करे और साफ – सुथरे वस्त्र धारण करे फिर पूजा के स्थान को गंगाजल के छींटे मार कर शुद्ध करे, फिर पूजा स्थान पर चौकी रखें उस पर लाल कपड़ा बिछाए उस पर अक्षत से नौ कोने बनाए, बीच से शुरू करते हुए बाहर की तरफ, उसके ऊपर भगवती देवी (मा अम्बे) की प्रतिमा रखे, प्रतिमा के सामने एक जल का कलश रखे देवी पुराण के अनुसार कलश को ही नौ देवियों का रूप माना जाता है और इसीलिए नवरात्र में कलश की पूजा की जाती है, कलश पर मौली बांधे उसमें थोड़ा गंगाजल डाले, एक सुपारी, हल्दी, चावल और सिक्का डाले.
आम के या पान के पत्ते सजाकर कलश पर रखें फिर एक नारियल ले उस पर मौली बांधे और फिर उस नारियल को पान के पत्तों पर सजा कर रखे, घी का अखंड दीपक प्रतिमा के दाएं यानी की राइट साइड पर रखिए इसे अभी जलाना नहीं है. पूजा सामग्री और थाली को पूजा के स्थान के पास ही रखें सबसे पहले आसन ग्रहण करें और आचमन ले, पहले बाएं हाथ से जल ले और दाएं हाथ में डालें दोनों हाथों को शुद्ध करें फिर
ओम दुर्गा देवी आई नमः बोल कर तीन बार जल ले
ओम दुर्गा देवी आई नमः
ओम दुर्गा देवी आई नमः
इसके बाद फिर से हाथ धो लें अपने आप को तिलक लगाएं साथ में अपने परिवार वालों को भी टीका लगाएं फिर अखंड घी के दीपक को जला दें याद रखें यह अखंड दीपक 9 दिन तक बुझना नहीं चाहिए और कलश अपनी जगह से हिलना नहीं चाहिए हाथ मे पुश्प और चावल रखें और संकल्प ले
मैं सतीश श्रद्धा भक्ति से आप की पूजा – अर्चना करने जा रहा हूं या जा रही हू और मेरी मनोकामना पूरी हो मेरा घर सुख शांति से भरा रहे मेरी बस यही कामना है यह बोलकर मां के सामने पुश्प और चावल छोड़ दें अब फुल से जल ले और जल का छिड़काव प्रतिमा और कलस पर करें उसके बाद हल्दी कुमकुम से DurgaMaa की प्रतिमा पर तिलक करें और कलस पर भी तिलक करें इसके बाद अक्षत को प्रतिमा के ऊपर छोड़े और कलस पर भी अर्पित करें अब एक चुनरी माता की प्रतिमा पर चढ़ाएं
अब कलश पर रखी नारियल पर भी चुन्नी चढ़ाये कलश पर फूल अर्पित करें और माता रानी की प्रतिमा को हार पहनाये इसके बाद श्रृंगार का सामान माता के चरणों में रख दे और सुहागन महिलाएं माता को श्रृंगार चढ़ाकर अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करें अब फुल द्वारा माता की प्रतिमा पर और कलस पर इत्तर छोड़े.
अब धूप बत्ती माता को दिखाएं घर में बने हुए प्रसाद को माता को दिखाकर चौकी के पास रखे अब पांच प्रकार के फल माता रानी को चढ़ाएं. ध्यान दे माता रानी को खट्टे फल बिल्कुल नहीं चढ़ाने है. अब नारियल और दक्षिणा माता की प्रतिमा के पास रख दें अब मिट्टी का छोटा मटका लेकर उसमें मिट्टी डाले और जॉ को बोये ऊपर से मिट्टी के ऊपर शुद्ध जल डाले और मटकी पर मोली बांधकर माता की प्रतिमा के बाएं तरफ रख दे.
अब मटकी पर हल्दी कुमकुम का टीका लगा दे अब वही टिका अपनी मांग पर लगा दे थोड़े से छोटे फूल मटके पर अर्पित करें इस रिवाज को कुछ लोग खेती भिजाना कहते खेती में पहले नवरात्र से लेकर आखिरी नवरात्र तक रोज सुबह स्वच्छ जल डालते हैं माना जाता है कि खेती जितनी अच्छी होती है माता उतनी प्रसन्न होती है. विसर्जन वाले दिन खेती को लाल चुनरी से ढककर और उसमें कुछ पैसे रखकर विसर्जन करते हैं. अब दोनों हाथों में फूल अक्षत लेकर दुर्गा माता से प्रार्थना करें कि हमसे इस पूजा विधि में जो कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करें और ओम दुर्गा देवी आई नमः मंत्र का उच्चारण तीन बार जोर से करते हुए माता के चरणों में फूल और अक्षत छोड़ दें.
अब जो महिलाये चाह्ती है दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़े.
अब दुर्गा मां की कपूर और घी का दीपक जलाकर आरती करें
! जय अम्बे गौरी….मैय्या… जय श्यामा गौरी…… !!
अब अपने परिवार को आरती दें और खुद भी आरती ले.
आरती की थाली मां के पास रख दे एक चम्मच पानी लेकर आरती के ऊपर से घुमाएं और नीचे छोड़ दे अब अपने परिवार को प्रसाद दें.
यदि आपने पहले और आखिरी दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं यदि 9 दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद व्रत की समाप्ति के बाद ग्रहण करे. जिन महिलाओं ने 9 दिन नवरात्रि का व्रत रखने का संकल्प किया है वह प्रतिदिन माता के नौ रूपों की पूजा दिन के हिसाब से करें व्रत रखने वाली महिलाएं प्रतिदिन फूलों का हार चुनरी फूल अक्षत प्रसाद फल और धूप बत्ती माता को फिर से चढ़ाकर आरती करें और यदि हो सके तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें नवरात्र पूरे होने पर कलश में रखे हुए पानी के छींटे पूरे घर में मारे. ध्यान रहे माता को हर दिन अलग रंग की चुन्नी चढ़ती है.
जो इस प्रकार शैलपुत्री लाल नारंगी
ब्रह्म चारिणि पीला
चंद्रघंटा सफेद
कुष्मांडा भूरा
स्कंदमाता गुलाबी
कात्यायिनी हरा
कालरात्रि आसमानी या फिर ग्रे
महागौरी नारंगी और
सिद्ध रात्रि को मरुन या फिर गहरा लाल
अपने परिवार की रीति के हिसाब से कन्या पूजन अष्टमी या नवमी को किया जाता है. कन्या पूजन नवरात्रि के व्रत का बहुत अहम हिस्सा माना जाता है इस पूजन के लिए 10 साल तक की 9 लड़कियों की जरूरत होती है इसमें महिलाएं मां जगदंबा के सभी नौ रूपों को याद करते हुए घर में आए सभी लड़कियों के पैर धोती है उनके हाथ में बोली बांध के माथे पर बिंदी लगाती है उनको हलवा – पूड़ी और चने खाने के लिए देकर कुछ तौफे और रुपए भी देती है जय माता दी कहकर लड़कियों के पैर छूकर उनके जाने के बाद खुद और अपने परिवार के साथ प्रसाद और भोजन उसी जगह पर करती है जहां लड़कियों को भोजन कराते है
जय अंबे गौरी मैया …………..