Durga mata katha – दुर्गा माता की कथा

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 Durga mata katha

नवरात्रि व्रत कथा को सुनने – सुनाने से कोढ़ी को काया, निर्धन को माया निपुत्री को पुत्र की प्राप्ति होती है.

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एक समय की बात है गुरु बृहस्पति जी ने ब्रह्मा जी ने प्रश्न किया हे ब्रहम देव मै यह जानना चाहता हूं कि आदि शक्ति जगदंबा के नवरात्रि व्रत क्यों किया जाता है इसे करने से किन फलों की प्राप्ति होती है इसे किस तरह करना चाहिए और इस व्रत को पहले किसने किया था कृपा कर विस्तारपूर्वक बताइए ब्रह्माजी बोले है बृहस्पति तुमने प्राणियों के हित के लिए यह बहुत अच्छा प्रश्न किया है जो मनुष्य श्रद्धा युक्त भाव से भगवती जगदंबा का ध्यान कर व्रत व पूजन करते हैं वे धन्य हैं यह नवरात्रि व्रत सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला इसे करने से निपुत्र को पुत्र, निर्धन को धन, कोढ़ी को काया, विद्या की चाह रखने वाले को विद्या तथा अन्य सुखों की इच्छा रखने वाले को सभी सुख प्राप्त होते हैं. मां भगवती की कृपा से सभी विपत्तियों का नाश होता है तथा घर की सुख समृद्धि में वृद्धि होती है वैसे तो नवरात्र व्रत यथाशक्ति सबको करनी चाहिए परंतु फिर भी कोई मनुष्य इस व्रत को पूर्ण रूप से न कर सके तो उसे एक समय भोजन कर पूरे नवरात्रि माता की व्रत की कथा का श्रवण करना चाहिए. 

हे बृहस्पति जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा में तुम्हें सुनाता हूं श्रद्धा पूर्वक सुने ब्रह्माजी बोले 
प्राचीन काल में मनोहर नगर में पिथक नाम का एक ब्राह्मण रहता था वह ब्राह्मण भगवती जगदंबा का भगत था नित्य प्रति मां की पूजा किया करता था उस ब्राह्मण के सुमति नाम की अति संस्कारवान तथा सुंदर कन्या थी. वह कन्या अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीडा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है वह ब्राह्मण जब प्रतिदिन दुर्गा मां की पूजा कर हवन किया करता था तो वह कन्या वहां उपस्थित रहती थी एक दिन वह कन्या अपनी सखियों के साथ खेल में इतना व्यस्त हो गई कि वह पूजा में उपस्थित न हो सके अपनी कन्या द्वारा की गई ऐसी गलती को देख ब्राह्मण को उस पर क्रोध आ गया और क्रोधित हो उसने अपनी कन्या से कहा यह दुर्मती बुद्धि वाली तूने आज भगवती का पूजा नहीं किया मैं तुझ पर रुष्ट हूं अब मैं तेरा विवाह किसी कुष्ठ रोगी या दरिद्र व्यक्ति से करूंगा पिता द्वारा कहीं इन शब्दों से सुमति आहत हुई और अपने पिता से बोली मैं आपकी कन्या हूं हर तरह से आपके अधीन हूं जिससे आपकी इच्छा हो मेरा विवाह कर देना पर मुझे वही मिलेगा जो मेरे भाग्य में लिखा होगा मुझे यह पूर्णतया विश्वास है जैसी अग्नि में घी डालने से अग्नि और अत्यधिक प्रज्वलित हो जाती है उसी तरह बेटी द्वारा कहे इन वचनों से वह ब्राह्मण और अधिक क्रोधित हो उठा और क्रोध की अग्नि में जलते हुए उसने शीघ्र ही अपनी कन्या का विवाह एक कुष्ठ रोगी से कर दिया.
और कन्या को विदा करते हुए बोला है पुत्री अब तुम अपना कर्म फल भोगो देखे भाग्य के भरोसे रहकर तुम क्या करती हो वह कन्या ऐसा पति पाकर दुखी थी पर यह सोच भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह अपने पति के साथ वन में चली गई और वह रात्रि उन्होंने बड़े कष्ट से व्यतीत कि उस गरीब ब्राह्मण बालिका की ऐसी दशा देख, देवी भगवती उसके पूर्व पुण्य के प्रभाव से वहां प्रकट हुई और कहां पुत्री में तुम पर प्रसन्न हूं तुम जो चाहो मुझसे मांग सकती हो
एकाएक अपने सामने दिव्य प्रकाश रूपी शक्ति को देख वह हाथ जोड़ खड़ी हो गई और बोली आप कौन हो और मैंने ऐसा कौन सा पुण्य कार्य किया है जिसके वशीभूत आपकी कृपा मुझे प्राप्त हो रही है कन्या का ऐसा वचन सुन मा ने उसे दर्शन देते हुए कहा मैं आदिशक्ति भगवती जगदंबा हूं मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं तुम जो चाहो मुझसे मांग सकती हो कन्या ने हाथ जोड़ मां से पूछा मां मैं पूर्व जन्म में कौन थी और मैंने ऐसा क्या किया था जो आपकी कृपा मुझे प्राप्त हुई मां ने कहा सुनो पूर्व जन्म में तुम एक निषाद अर्थात भील की स्त्री थी तुम अति पतिव्रता थी.मुझ में आस्था रखने वाली थी 1 दिन परिस्थितियों के वशीभूत होकर तुम्हारे पति निषाद ने चोरी की चोरी करने के कारण राजा की सैनीक उसके साथ-साथ तुझे भी ले गए और ले जाकर कारागृह में डाल दिया वहां पर तुम दोनों 9 दिन तक रहे वहां ना तुम्हे भोजन दिया गया और ना ही तुम्हे जल दिया गया वह समय मेरे नवरात्रों का था और कुछ ना खाने पीने के कारण तुम्हारे द्वारा मेरा व्रत हो गया. पुत्री उस समय तुमसे जो व्रत हुए उसके प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं तुम्हारी जो इच्छा हो वह मांगो वह कन्या बोली मां आप मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे पति को कोड मुक्त करो ऐसा सुनते ही मां ने कहा तथास्तु
तब उसके पति का शरीर भगवती की कृपा से कुष्ठ रोग से रहित हो अति कांति वान हो गया अपने पति की मनोहर देह को देखकर वह भगवती की स्तुति करने लगी हे मा आपने मेरा उद्धार किया है आप को मेरा बारंबार प्रणाम है मां मेरी रक्षा करो, रक्षा करो.
ब्रह्माजी बोले है बृहस्पति कन्या द्वारा की गई स्तुति से प्रसन्न होकर मां ने उसे आशीर्वाद दिया और कहां है पुत्री मेरी कृपा से तू सब सुखों से संपन्न हो शीघ्र ही उदालक नामक अति बुद्धिमान धनवान कीर्तिमान तथा जितेंद्रिय पुत्र की माता होगी ऐसा आशीर्वाद देकर मां अंतर्ध्यान हो गई. 
ब्रह्माजी बोले हे बृहस्पति इस प्रकार इस दुर्लभ व्रत का महत्व

मैंने तुम्हें बताया है जो भी मनुष्य इस व्रत को भक्ति पूर्वक 

करता है वह इस लोक में सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है बोलो 

 
भगवती जगदंबा की जय ….

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