Pitru paksha – shradh 2020
हिंदुओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्यु के उपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं, अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है. लेकिन अंत्येष्टि के बाद भी कुछ “कर्म” ऐसे भी होते हैं, जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है, श्राद्ध (sharadh) कर्म उन्हीं में से एक है.
प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को वैसे तो shraddh कर्म किया जा सकता है लेकिन भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक सम्पुर्ण हिंदू समाज को shradh कर्म करने का विधान शाश्त्रो मे बताया गया है. इसीलिये अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध (पित्र) पक्ष कहते हैं.
ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देव पूजन से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं और यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान और मृत्यु उपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं इसके पीछे मान्यता भी है कि यदि विधि अनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्यु लोक में ही भटकती रहती हैं पित्र पक्ष को मानने का ज्योतिषी कारण भी है ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष को काफी अहम माना जाता है जब जातक सफलता के बिल्कुल नजदीक पहुंच कर भी सफलता से वंचित होता है, संतानोत्पत्ति में परेशानियां आ रही होती हैं, धन हानि हो रही होती है तो ज्योतिषाचार्य पित्र दोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावना बताते हैं इसलिए पितृदोष से मुक्ति के लिए पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है पितरों का श्राद्ध में किस दिन करना चाहिए इससे हमारे मन में यह प्रश्न भी उठता है वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिए पिंडदान श्राद्ध कर्म किए जा सकता हैं लेकिन पितृपक्ष में श्राद्ध करने का महत्व बहुत अधिक माना जाता है.
पितृपक्ष में किस दिन पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिये?
देश को वर्ष 2020 में पितृपक्ष 1 सितंबर से लेकर 17 सितंबर तक चलेंगे और पूर्णिमा का श्राद्ध होगा 1 सितंबर 2020 को और सर्वपितृ अमावस्या का जो श्राद्ध होगा वह होगा 17 सितंबर 2020