Mahashivratri vrat Katha – शिवरात्रि की कहानी

Mahashivratri vrat Katha - शिवरात्रि की कहानी

Mahashivratri vrat Katha : प्राचीन काल में किसी जंगल में एक गुरु ध्रुव नाम का शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता था और अपने परिवार का भरण पोषण शिकार से किया करता था एक बार शिवरात्रि के दिन जब गुरु ध्रुव शिकार के लिए निकला संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार ना मिला इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का शिवरात्रि का व्रत हो गया उसके बच्चे पत्नी एवं माता माता-पिता को भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह चिंतित था सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया और घाट के किनारे पेड़ पर थोड़ा सा पीने के लिए पानी लेकर चढ़ गया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई ना कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए वहां जरूर आएगा वह बेलपत्र का पेड़ था और उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्र से

Mahashivratri vrat Katha - शिवरात्रि की कहानी

ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था रात का पहला पहर बीतने से पहले एक हिरनी वहां पानी पीने के लिए आई उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा ऐसा करने से उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते और जल की कुछ बूंदें नीचे शिवलिंग पर गिर गए अनजाने में शिकारी के पहले पहर की पूजा हो गई पत्तों की आवाज से हिरण ने जब ऊपर देखा तो भयभीत होकर शिकारी से कांपते हुए मुझे मत मारो शिकारी ने कहा मैं और मेरा परिवार भूखा है इसलिए तुम्हें नहीं छोड़ सकता है हिरण भयभीत होकर शिकारी से जीवन दान की याचना करने लगी बोली मेरे छोटे छोटे-छोटे बच्चे हैं और मेरे वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं मैं उन्हें अपने पति को सौंप आओ तो मुझे मार देना मुझे बस इतना समय दे दो झूठ नहीं बोल रही तो मुझ पर विश्वास करो मैं शीघ्र ही लौट आऊंगी अगर मैं लौट कर नहीं आई तो मुझे वह श्राप लगे

जो विश्वासघाती और शिव द्रोही को लगता है इस प्रकार के विश्वास दिलाने पर शिकारी ने उसे जाने दिया और हिरणी वहां से चली गई कुछ देर बाद शिकारी ने देखा कि एक मोटा ताजा हिरण जल पीने वहां आया फिर से शिकारी ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और फिर से कुछ जल और बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ गए इस प्रकार शिकारी की दूसरे पहर की पूजा भी हो गई धनुष पर बाण चढ़ा देख हिरण ने पूछा यह तुम क्या कर रहे हो मैं घर पर अपने बच्चों को छोड़कर आया हूं मुझे इतना समय दे दो कि मैं अपने बच्चों को धैर्य देकर शीघ्र ही लौट आओ तो मुझ पर विश्वास रखो शिकारी ने हिरण को जाने दिया हिरण जल्दी कर वहां से चला गया अब दोनों हिरण घर जाकर जब इकट्ठे हुए तो अपना अपना वृत्तांत एक दूसरे को सुनाते हुए बोले हमें जल्द ही शिकारी के पास लौटना है अपने बच्चों को धैर्य देकर जैसे ही चलने को

तैयार हुए सबसे पहले हिरणी बोली शिकारी के पास मै जाऊंगी और आप मेरे बच्चों का ख्याल रखना. हिरणी की बात सुनकर हिरन बोला मां के बिना बच्चों को कोई नहीं संभाल सकता तो तुम यहीं रहो मैं शिकारी के पास जाऊंगा हिरणी बोली पति के बिना पत्नी का कैसा जीवन आप की मृत्यु के बाद मै कैसे जीवित रहूंगी मैं वहां अवश्य जाऊंगी और वह दोनों बच्चों को समझाकर चल पड़े जब बच्चों ने देखा माता माता-पिता जा रहे हैं तो हम क्या करेंगे तब वह भी उनके साथ हो लिए इस प्रकार वह सभी शिकारी के पास पहुंचे उन्हें देखकर शिकारी ने झट से धनुष पर बाण चढ़ाया जिससे फिर कुछ बेल पत्र और जल शिवलिंग पर चढ़ गया जिससे शिकारी के तीसरे पहर की पूजा भी हो गई और उसे ज्ञान की प्राप्ति हुई हिरण ने कहा हम सभी उपस्थित हैं आप हमारा वध करके अपने परिवार की भूख मिटाई तब भगवान शंकर की कृपा से प्राप्त कर वह

सोचने लगा मुझसे तो यह अज्ञानी पशु ही धन्य हैं जो कि परोपकार परायण होकर अपना शरीर दे रहे हैं और मैं मनुष्य जन्म पाकर भी हत्यारा बन चुका हूं यह सोचकर शिकारी बोला तुम सभी धन्य हो तुम्हारा जीवन सफल है जाओ मैं तुम्हें नहीं मारता तुम निर्भय होकर यहां से जाओ शिकारी के ऐसा कहते ही स्वयं भोलेनाथ वहां प्रकट हुए और बोले मैं तुमसे प्रसन्न हूं मनचाहा वर मांगो यह सुनकर शिकारी मां के चरणों में गिर पड़ा आंखों से नीर बहन लगे भगवान शंकर ने उसे सुख समृद्धि का वरदान देकर गुरु नाम प्रदान किया.

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