Sankat chaturthi
संकट चतुर्थी का व्रत पुर्निमा के बाद आने वाली चतुर्थी को रखा जाता है .इस व्रत मे चांद के दर्शन अनिवार्य होता है. मनोकामनाओ की पुर्ति के लिये इसे फलदायि माना जाता है. शुक्ल पछ की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और क्र्श्ण पछ कि चतुर्थी को संकश्टी चतुर्थी कहा जाता है.
इस दिन व्रत रखने वाले को सुबह स्नान करके स्वछ वस्त्र धारन करने चाहिये तत्पश्चात हाथ मे जल लेकर पुश्प और अछत धारण कर भगवान का मुर्ति स्थापित करना चाहिये और विधि विधान से पुजा करना चाहिये.
संकट चतुर्थी कथा
बारात प्रस्थान होने ही वाली थी कि नारद जी ने भगवान गणेश कि अनुपस्थिति देख भगवान श्री हरि से कहा कि सभी देवी देवता यहा आये है पर गणेश जी उपस्थित नही है अत: भगवान श्री गणेश जी को आने को कहा जाये तब श्री हरि ने Lord Ganesha को बुलवाया लेकिन वो छोटा है वो बारात मे जाकर क्या करेगे और उनकी सवारी भी उनको लेकर समय पर नही पहुच पायेगी उनका एवम उनकी सवारी का उपहास उडाया, वो यही घर पर रह कर घर कि रखवाली करे “उनका अनादर” किया जो भग्वान श्री गणेश जी को बहुत बुरा लगा.
बारात बीना श्री गणेश जी के प्रश्थान हो गयी तब नारद जी ने गणेश जी से कहा कि हे लम्बोदर आपके पास मुशक सेना है अत: आप अपने मुशक सेना को भेज कर श्री नारायण जी के बारात का मार्ग अवरुध करे तभि आपके अपमान का बद्ला पुरा होगा फिर गणेश जी ने मुशक सेना भेज कर श्री विश्णु जी कि बारात जिस मार्ग से जा रही थी उस मार्ग को मुशको से खुद्वा दिया. जिससे श्री नारायण भगवान (Lord Vishnu) के रथ का पहिया जमीन मे धस गया और कई जगह से टुट गया . बहुत प्रयास किया गया रथ के पहिये को निकालने के लिये लेकिन रथ का पहिया नही निकला फिर पास के खेत मे एक खाती काम कर रहा था तब उसे बुलाया गया. उसने भी रथ निकालने का बहुत प्रयास किया लेकिन रथ जमीन से नही निकला . फिर नारद जी ने श्री हरि से कहा हे नारायण आप ने जाने अंजाने Lord Ganesh का अपमान किया है अत: आपके शुभ कार्य मे रुकावट अथवा बाधा उत्पन्न हो रही है आप श्री गणेश जी को बुलवाये उनका सम्मान करे और उनका विधि विधान से पुजा करे तब आपका शुभ कार्य सम्पन होगा. भगवान श्री नारायण भगवान ने सप्रेम आदर पुर्वक श्री गणेश जी को बुलाया और उनको सम्मान देते हुये उनकी पुजा अर्चना की जिसके पश्चात उनका रथ का पहिया जमिन से निकला और आगे का कार्य सफलता पुर्वक बीना किसी विघ्न के सिध हुआ जिस कारण से भगवान श्री लम्बोदर को विघ्न्हर्ता भी कहा जाने लगा.